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Showing posts from November, 2019

अयोध्या फैसले पर वागीश मेहता ,राष्ट्रीय अध्यक्ष ,भारतधर्मी समाज

अयोध्या फैसले पर वागीश मेहता ,राष्ट्रीय अध्यक्ष ,भारतधर्मी समाज :बकौल आपके यह फैसला पक्ष विपक्ष का नहीं भारत की एक चिरकालिक समस्या का राष्ट्रीय समाधान प्रस्तुत करता है। इस विषय में माननीय असददुद्दीन ओवैसी अपनी खुद की राय रखते हुए कहते हैं ,सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम ज़रूर है ,इनसोलुबिल नहीं है। हम उनसे असहमत रहते हुए उनके   विमत का भी उतना ही आदर करते  हैं यही तो लोकतंत्र की ताकत है बस यदि यह उनकी निजी राय है तो अपने लिए 'हम 'सम्बोधन नहीं 'मैं 'मेरी ' राय में का इस्तेमाल करें।नाहक अपनी जुबां मुसलमानों के मुंह में फिट करने मुस्लमानाओं की ज़ुबाँ बतलाने की कोशिश न करें। इस्लाम का तो मतलब ही अमन है। कैसे तालिबान (इल्मी ,विद्यार्थी हैं ?)ज़नाब ओवेसी साहब ? कई लोग पूछ रहे हैं वे बे -शक मुस्लमान है, मुस्लिम हैं ,लेकिन सुप्रीम -मुस्लिम,सुपर मुसलमां  नहीं हैं। चाहे तो वह आइंदा आने वाले संभावित क्यूरेटिव पिटीशन की ज़िरह अपने हाथ में ले लें। यह टाइटिल सूट पर फैसला था ,जो खुदाई में मिले साक्ष्यों  के आधार पर दिया गया है कोरी आस्था पर नहीं। तुलसीदास के समय (भारत का बिखरा हुआ आस्थाह

ज़ुबाँ संभाल के

ज़ुबाँ संभाल के  हर्ष का विषय है अरविन्द केजरीवाल साहब अब नारायण सामी (वर्तमान मुख्यमंत्री ,पुडुचेरी )की ज़ुबान नहीं बोल रहे हैं। महिलाओं के लिए मुफ्त सवारी डीटीसी और क्लस्टर बसों में कामगार वर्ग के लिए एक अच्छा तोहफा ज़रूर है। उन्हें चंद वोट इस एवज़ फ़ालतू भी मिल सकते हैं। मगर उनकी उस जुबां का क्या हुआ जो पहले (चुनाव पूर्व संकल्प में ५,००० अतरिक्त बसों की )और बाद में १०,००० अतिरिक्त बसें डीटीसी के पाले  में लाने की बात कह रही थी। आप को एक और बात के लिए भी बधाई अब आप पढ़े लिखों जैसी जुबां इस्तेमाल कर रहें हैं। लेकिन प्रदूषण के मामले में आप की बात में ज़रा भी वजन इसलिए नहीं है क्योंकि आप हैप्पी -सीडिंग की बात न करके धान की फसल के बचे खुचे अंश पराली के सर पर सारा वजन लाद रहें हैं। हमारा मानना है हमारी होनहार छात्रा (किशोरी अमनदीप )से जो किसानी को पर्यावरण के अनुरूप ले जाने वाली परम्परा की अग्रदूत बन गई है आप सीख लेते हुए कुछ हैप्पी सीडिंग सुविधाएं किसानों को मुहैया करवाने की बात कहते। इससे एक तरफ मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ती दूसरी तरफ ६०- ७० फीसद तक रासायनिक खाद की बचत होती। ज़नाब ये परम्परागत क