#HindiCheeniByeBye #हिंदी चीनी बॉय बॉय
गत अमरीकी प्रवास के दौरान मैं ने सीवीएस फार्मेसी ,कैन्टन(यूएसए ) से एक पांच डॉलर का बड़ा नेल -कटर लिया था पैरों की उँगलियों के नाखून काटने के लिए। बचपन से कोरियाई नेलकटर ही इस्तेमाल करते आये थे हिन्दुस्तान में वही मिलता था। ये ऐसा नख-कतरक साबित हुआ जो नख-करतन के दरमियान ही दो भांगों में टूट गया।
किसी सामान की कोई गारंटी नहीं ,बिका हुआ माल वापस नहीं होगा ,आज नकद कल उधार दुकानों पे लिखा देखते -देखते हम बालक से बालिग़ और फिर बुजुर्ग कब हो गए कुछ पता ही न चला। आज भी कई दुकानों पे ये इबारत मुंह चढ़ के बोलतीं हैं। किसी सामान की कोई गारंटी नहीं। सस्ता और उठाऊ या भरोसे मंद और टिकाऊ फैसला आप को और मुझे करना है।
यकीन मानिये ये चेतावनी ,साफगोई चीनी सामन पे शत -प्रतिशत लागू होती है। उधर अमरीका में रवायत है आप कोई भी सामान ९० दिन के अंदर वापस कर सकतें हैं पूरे पैसे लौटाए जाएंगे।
अब फैसला हमें करना है कोरोना बम के अनुसंधान करता चीन और इसके सामान से हमारा इतना लगाव है हम इसके बिना रह नहीं सकते ?या फिर ऐसा कुछ भी नहीं है। हम इसे अब और अभी तिलांजली दे सकते हैं। यदि ऐसा है तो फ़ौरन लिखिए ट्वीट करिये फेसबुक पे लिखिए
#हिंदीचीनीबॉयबॉय।
हमारी इस सोच में आकस्मिक बदलाव की वजह यकायक नहीं बनी है चीन अपनी क्रीप फॉरवर्ड नीति के तहत किसी भी राष्ट्र की सम्प्रभुता को रौंद कर रेंगता हुआ आगे बढ़ता आया है भारत चीन की सीमा एक अ -रेखांकित सीमा है जिसकी कभी पैमाइश ही नहीं की गई है। लाइन आफ एक्चूअल कंट्रोल (एलएसी ) इसे कैसे और क्यों मान लिया जाए। चीन इसी का फायदा उठाकर तीन कदम आगे बढ़ता रहा है विरोध मिलने पर दो कदम पीछे लौट जाता रहा है।एक कदम का फायदा इसे होता रहा है। ताइवान ,हांगकांग ,औस्ट्रेलिया अन्य छोटे बड़े मुल्क यूँ ही इसके विरोध में आगे नहीं आये हैं। हदों के पार चला गया है ड्रेगन। आर्थिक बहिष्कार इसे रीढ़विहीना करके छोड़ेगा ,मैं और आप हम एक अरब सैंतीस करोड़ से ऊपर लोग ऐसा कर सकते हैं । फैसला कर लीजिये आइंदा चीनी घटिया सस्ते उठाऊ दिखाऊ ब्रिटिल, भंगुर ,दहनशील , साज़ो सामान को तरजीह नहीं देंगे। दुनिया भर में इसकी पहल हो चुकी है।
इस मिथकीय काल्पनिक ड्रेगन को इसकी कद काठी औकात बताना आज ज़रूरी हो गया है। सहमत हैं तो लिखें :#हिंदीचीनीबायबाय।
नमक हराम है यह मुल्क जो भारत से पंडित जी के शासन काल से ही भारत की मेहमान नवाज़ी भोग कर दगा देता रहा है। नेहरू ने ही इसे सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता दिलवाई ,ये एहसान फरामोश सर्वभक्षी क्या जाने।
१९६२ में इसने कितनी ज़मीन भारत की कब्ज़े में ली सब जानते हैं। इसके बाद भी बारहा यह इसी नीति पर बढ़ने का दुस्साहस करता रहा है। बरसों से करता आया है।
कर्नल संतोष पे इलाके का सर्वे करने के दौरान जिस प्रकार घात लगाके चीनी फौज ने बखनखे पहन प्राण लेवा हमला किया उनकी निरीक्षण टोली में शामिल अन्य जांबाज़ों को निशाने पे लिया उसके बाद भी यदि हमारा खून नहीं खौलता तो हम भारतीय नहीं है टुकड़ा -टुकड़ा टुकड़खोर गैंग के समर्थक हैं ,पुरूस्कार लौटाऊ लौटंक के पूजक हैं। जो सुबूत गैंग भी कहलाता है।
गलवां घाटी हमारी है इस ड्रेगन ने जहां तक यह रेंगते रेंगते बढ़ आया था लौटने का वायदा किया था। वायदे पे इसने अमल किया या नहीं बस यही तो देखने गए थे कर्नल संतोष।
हरे कृष्णा !
गत अमरीकी प्रवास के दौरान मैं ने सीवीएस फार्मेसी ,कैन्टन(यूएसए ) से एक पांच डॉलर का बड़ा नेल -कटर लिया था पैरों की उँगलियों के नाखून काटने के लिए। बचपन से कोरियाई नेलकटर ही इस्तेमाल करते आये थे हिन्दुस्तान में वही मिलता था। ये ऐसा नख-कतरक साबित हुआ जो नख-करतन के दरमियान ही दो भांगों में टूट गया।
किसी सामान की कोई गारंटी नहीं ,बिका हुआ माल वापस नहीं होगा ,आज नकद कल उधार दुकानों पे लिखा देखते -देखते हम बालक से बालिग़ और फिर बुजुर्ग कब हो गए कुछ पता ही न चला। आज भी कई दुकानों पे ये इबारत मुंह चढ़ के बोलतीं हैं। किसी सामान की कोई गारंटी नहीं। सस्ता और उठाऊ या भरोसे मंद और टिकाऊ फैसला आप को और मुझे करना है।
यकीन मानिये ये चेतावनी ,साफगोई चीनी सामन पे शत -प्रतिशत लागू होती है। उधर अमरीका में रवायत है आप कोई भी सामान ९० दिन के अंदर वापस कर सकतें हैं पूरे पैसे लौटाए जाएंगे।
अब फैसला हमें करना है कोरोना बम के अनुसंधान करता चीन और इसके सामान से हमारा इतना लगाव है हम इसके बिना रह नहीं सकते ?या फिर ऐसा कुछ भी नहीं है। हम इसे अब और अभी तिलांजली दे सकते हैं। यदि ऐसा है तो फ़ौरन लिखिए ट्वीट करिये फेसबुक पे लिखिए
#हिंदीचीनीबॉयबॉय।
हमारी इस सोच में आकस्मिक बदलाव की वजह यकायक नहीं बनी है चीन अपनी क्रीप फॉरवर्ड नीति के तहत किसी भी राष्ट्र की सम्प्रभुता को रौंद कर रेंगता हुआ आगे बढ़ता आया है भारत चीन की सीमा एक अ -रेखांकित सीमा है जिसकी कभी पैमाइश ही नहीं की गई है। लाइन आफ एक्चूअल कंट्रोल (एलएसी ) इसे कैसे और क्यों मान लिया जाए। चीन इसी का फायदा उठाकर तीन कदम आगे बढ़ता रहा है विरोध मिलने पर दो कदम पीछे लौट जाता रहा है।एक कदम का फायदा इसे होता रहा है। ताइवान ,हांगकांग ,औस्ट्रेलिया अन्य छोटे बड़े मुल्क यूँ ही इसके विरोध में आगे नहीं आये हैं। हदों के पार चला गया है ड्रेगन। आर्थिक बहिष्कार इसे रीढ़विहीना करके छोड़ेगा ,मैं और आप हम एक अरब सैंतीस करोड़ से ऊपर लोग ऐसा कर सकते हैं । फैसला कर लीजिये आइंदा चीनी घटिया सस्ते उठाऊ दिखाऊ ब्रिटिल, भंगुर ,दहनशील , साज़ो सामान को तरजीह नहीं देंगे। दुनिया भर में इसकी पहल हो चुकी है।
इस मिथकीय काल्पनिक ड्रेगन को इसकी कद काठी औकात बताना आज ज़रूरी हो गया है। सहमत हैं तो लिखें :#हिंदीचीनीबायबाय।
नमक हराम है यह मुल्क जो भारत से पंडित जी के शासन काल से ही भारत की मेहमान नवाज़ी भोग कर दगा देता रहा है। नेहरू ने ही इसे सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता दिलवाई ,ये एहसान फरामोश सर्वभक्षी क्या जाने।
१९६२ में इसने कितनी ज़मीन भारत की कब्ज़े में ली सब जानते हैं। इसके बाद भी बारहा यह इसी नीति पर बढ़ने का दुस्साहस करता रहा है। बरसों से करता आया है।
कर्नल संतोष पे इलाके का सर्वे करने के दौरान जिस प्रकार घात लगाके चीनी फौज ने बखनखे पहन प्राण लेवा हमला किया उनकी निरीक्षण टोली में शामिल अन्य जांबाज़ों को निशाने पे लिया उसके बाद भी यदि हमारा खून नहीं खौलता तो हम भारतीय नहीं है टुकड़ा -टुकड़ा टुकड़खोर गैंग के समर्थक हैं ,पुरूस्कार लौटाऊ लौटंक के पूजक हैं। जो सुबूत गैंग भी कहलाता है।
गलवां घाटी हमारी है इस ड्रेगन ने जहां तक यह रेंगते रेंगते बढ़ आया था लौटने का वायदा किया था। वायदे पे इसने अमल किया या नहीं बस यही तो देखने गए थे कर्नल संतोष।
हरे कृष्णा !
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